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Wednesday, September 29, 2010

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आपसे विनम्र अनुरोध है कि सामाजिक सदभावना को बनाये रखें!

प्रिय महोदय / महोदया,

जैसा कि आप सभी को पता ही होगा कि बाबरी मस्जिद प्रकरण पर माननीय उच्च न्यायलय इलाहबाद खंडपीठ लखनऊ को अब अपना निर्णय 30 सितम्बर को उद्घोषित करना होगा। ऐसे आदेश माननीय उच्चतम न्यायलय ने जारी किये हैं।सांप्रदायिक दल तरह-तरह की अफवाहें फैलाने में लगे हुए हैं! इस तरह की हरकतों से देश की एकता और अखंडता कमजोर होती है।

आपसे अनुरोध है कि ऐसी अफवाहों में न पड़ें! नज़र नज़र का फेर आपसे विनम्र अनुरोध करता है कि सामाजिक सद्भावना को बनाये रखें! इसी को ध्यान में रखते हुए एक कविता पढ़ी है, आपके विचार इस पर प्रार्थनीय हैं.

मन्दिर में रहते यदि अल्ला, मस्जिद में रहते भगवान!
तब क्या कम हो जाता मान?

अगर मौलवी पढ़ते गीता, पंडित पढ़ते पाक कुरान!
क्या वे कहलाते अज्ञान?

उर्दू में होती यदि गीता, संस्कृत में पाक कुरान
तब क्या करता कोई अपमान?

मुस्लिम भजन-कीर्तन करते हिंदू देते अगर अजान!
तब क्या कम होते गुणगान?

बन्दा तू अल्ला का भी है तुझे प्यार करते भगवान्
ना ही हिन्दू ना ही मुस्लिम 'दीपक' तो हैं सब एक समान।

इतना जान! बस इतना जान!

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